रसखान – कवि परिचय, दो रचनाएँ, भावपक्ष – कलापक्ष, साहित्य में स्थान | Raskhan ka jeevan Parichay, Rachnaye, bhavpaksha, kalapaksha, Sahitya me sthan

रसखान – कवि परिचय, दो रचनाएँ, भावपक्ष – कलापक्ष, साहित्य में स्थान | Raskhan ka jeevan Parichay, Rachnaye, bhavpaksha, kalapaksha, Sahitya me sthan

जन्मतिथि………… पिता का नाम………….. शिक्षा-दीक्षा…………..मृत्यु……………. 

रसखान, हिंदी साहित्य के भक्ति काल के महान कवियों में से एक थे। इनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था। इनका जन्म 1548 में दिल्ली में हुआ था। इन्होंने विठ्ठलनाथ से दीक्षा ली। वे एक सूफी संत और कृष्णभक्त थे, जिनका जीवन भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में समर्पित रहा।इनकी मृत्यु 1628 में हो गई।

रसखान – रसखान रत्नावली                   

सुजान – सुजान रसखान

(क) भावपक्ष – रसखान का भाव पक्ष श्रीकृष्ण की भक्ति, प्रेम, और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम है। उनकी रचनाओं में सगुण भक्ति की प्रधानता है, जहाँ कृष्ण को आराध्य, सखा, और प्रेमी रूप में प्रस्तुत किया गया है। राधा-कृष्ण के प्रेम, वृंदावन की सुंदरता, और ब्रज संस्कृति का सजीव चित्रण उनकी कविताओं को कोमलता और गहराई प्रदान करता है।

(ख) कलापक्ष – रसखान का कला पक्ष उनकी काव्य रचनाओं की सौंदर्यपूर्ण भाषा, सरस शैली, और चित्रात्मक वर्णन में प्रकट होता है। उनकी ब्रज भाषा सरल, मधुर और प्रवाहपूर्ण है। अलंकारों और रसों का सुंदर प्रयोग उनकी रचनाओं को जीवंत बनाता है। प्रकृति, प्रेम, और श्रीकृष्ण की लीलाओं का सजीव चित्रण उनकी कविता में भाव और कला का अद्भुत संतुलन प्रस्तुत करता है।

रसखान का साहित्य में स्थान केवल भक्ति साहित्य तक सीमित नहीं है, बल्कि वे भारतीय काव्य परंपरा में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखते हैं। उनकी रचनाएँ साहित्यिक सौंदर्य, धार्मिक और सांस्कृतिक समरसता का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। 

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