मन्नू भंडारी – जीवन परिचय, रचनाएँ, भाषा-शैली, साहित्य में स्थान | Mannu Bhandari ka jeevan Parichay, Rachnaye, Bhasha-shaili, Sahitya me sthan

मन्नू भंडारी – जीवन परिचय, रचनाएँ, भाषा-शैली, साहित्य में स्थान | Mannu Bhandari ka jeevan Parichay, Rachnaye, Bhasha-shaili, Sahitya me sthan

इसमें केवल 4 बिंदु लिखे –

जन्मतिथि………… पिता का नाम………….. शिक्षा-दीक्षा…………..मृत्यु…………….

मन्नू भंडारी जी का जन्म 1931 ई० में मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम उनके पिता सुख सम्पतराय था वे भी जाने माने लेखक थे। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा अजमेर में व उच्च शिक्षा दिल्ली के मिरांडा हाउस कॉलेज में हुआ। इनका देहावसान 1921 ई० को हुआ।

    TRICK :  “बंटी की प्लेट पर महाभोज बिना दीवारों के”

बंटी – आपका बंटी (उपन्यास)   

प्लेट – एक प्लेट सैलाब (कहानी)        

महाभोज – महाभोज (उपन्यास)   

बिना दीवारों के – बिना दीवारों का घर (नाटक) 

मन्नू भंडारी ने बोलचाल में व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया है। इन्होंने आवश्यकता अनुसार तत्सम, तद्भव, देशज तथा विदेशी शब्दों का प्रयोग किया हैं। ये मुहावरों और लोकोक्तियों का भी प्रयोग की हैं। इनके भाषा में संप्रेषण की अदभुत क्षमता देखने को मिलती है।

इन्होंने भावात्मक स्थलों पर भावात्मक शैली जिससे की भाषा सरल, सरस एवं मधुर हो गई। वर्णनात्मक शैली घटना, स्थान, वस्तु के लिए प्रयोग किया। संवाद शैली के कारण उपन्यासों, कहानी में सजीवता आई। स्वाभाविक विषमताओं, नारी शोषण पर तीखे व्यंग हेतु व्यंगात्मक शैली का प्रयोग किया गया।

इन्होंने आम आदमी के दर्द को लेखनी के माध्यम से आगे उठाया।आधुनिक कथा साहित्य में मन्नू भंडारी का प्रतिष्ठित स्थान हैं।

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