कबीरदास – कवि परिचय, दो रचनाएँ, भाव पक्ष- कला पक्ष, साहित्य में स्थान | Kavirdas ki do Rachnaye, Bhavpaksha, Kalapaksha, Sahitya me sthan

इसमें केवल 4 बिंदु लिखे –

जन्मतिथि………… पिता का नाम………….. शिक्षा-दीक्षा…………..मृत्यु……………. 

कबीरदास जी का जन्म 1398 ई. में काशी में हुआ। नीरू और नीमा नामक जुलाहे दंपति ने कबीर को बनारस में तालाब के किनारे पाया था। कबीर प्रसिद्ध संत रामानंद के शिष्य माने जाते हैं। इन्होंने मूर्ति पूजा, कर्मकांड  तथा बाहरी आडम्बरों का विरोध किया। इन्होंने हिंदू – मुस्लिम एकता का नारा दिया। ये पढ़े लिखे नहीं थे। इनकी वाणी का संग्रह उनके शिष्य धर्मदास ने किया। इनकी मृत्यु 1518 ई. में हुई।

 सा –  साखी            

सब – सबद       

रमा – रमैनी

कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के एक प्रमुख संत-कवि थे। उनके काव्य में गहन दार्शनिकता और सरल भाव व्यंजना का अद्भुत समन्वय मिलता है। कबीर का मुख्य संदेश आध्यात्मिकता और भक्ति है। उनकी रचनाओं में निर्गुण भक्ति का प्रभाव है, जहाँ वे ईश्वर को निर्गुण, निराकार और सर्वव्यापी मानते हैं। साथ ही ये बाह्य आडंबरों का विरोध भी किया।

कबीर दास जी पढ़े लिखे नहीं थे इनको ज्ञान की प्राप्ति सत्संग और भ्रमण से प्राप्त हुई। उनकी भाषा में अवधी, राजस्थानी, ब्रज, खड़ी बोली का समावेशन देखने को मिलता है। कबीर ने दोहा, चौपाई एवं छंदों का प्रयोग किया। आपके काव्य में अनुप्रास, रूपक, उपमा जैसे अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ।  

ज्ञानमार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि कबीर दास जी हिन्दी साहित्य के बहुप्रतिभा सम्पन्न कलाकार एवं साहित्यकार हैं। ज्ञानमार्गी कबीर दास का हिन्दी साहित्य में मूर्धन्य स्थान है। उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में सत्य और पावनता पर बल दिया।

 

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