बाल मुंकुद गुप्त – लेखक परिचय, रचनाएँ, भाषा शैली, साहित्य में स्थान | Balmukund Gupt ka Lekhak Parichay, Rachnaye, Bhasha Shaili, Sahitya me sthan

बाल मुंकुद गुप्त – लेखक परिचय, रचनाएँ, भाषा शैली, साहित्य में स्थान | Balmukund Gupt ka Lekhak Parichay, Rachnaye, Bhasha Shaili, Sahitya me sthan

 इसमें केवल 4 बिंदु लिखे –

जन्मतिथि………… पिता का नाम………….. शिक्षा दीक्षा…………..मृत्यु…………….

बालमुकुंद गुप्त का जन्म 14 नवंबर, 1865 ई. को हरियाणा के रेवाड़ी जिले के गाँव गुडियानी में हुआ इनके पिता का नाम पूरणमल गोयल था। इनका परिवार बख्शी राम बालों के नाम से प्रसिद्ध था। उर्दू और फारसी की प्रारंभिक शिक्षा के बाद 1886 ई॰ में पंजाब विश्वविद्यालय से प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में उत्तीर्ण की। ये विद्यार्थी जीवन से ही उर्दू में पत्र लिखने लगे। इन्होंने अखबार-ए-चुनार’ तथा ‘कोहेनूर’ का सम्पादन किया। 42 वर्ष की अल्पायु में सन् 1907 ई. में गुप्त जी का देहान्त हो गया। 

ट्रिक : भारत काचाचा हंसते हुए सत्कार करता है।

भारत = भारत मित्र,       चाचा = चाचा छक्कन,       हंसते = हंस,      सत्कार = सत्कार ।

बालमुकुंद गुप्त की भाषा-शैली सरल, सजीव और व्यंग्यात्मक होती थी। उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी लेखनी से गद्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी भाषा शैली में निम्नलिखित विशेषताएं देखी जा सकती हैं:

  1. सरलता: गुप्त जी की भाषा सरल और स्पष्ट थी। उन्होंने आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया, जिससे उनके लेखन को हर वर्ग के पाठक आसानी से समझ सकते थे।
  2. सजीवचित्रण: बालमुकुंद गुप्त ने अपने लेखों में घटनाओं, पात्रों और स्थानों का सजीव चित्रण किया।
  3. व्यंग्य: उनके लेखन की प्रमुख विशेषता उनका व्यंग्य था। वे सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं पर तीखा व्यंग्य करते थे, लेकिन यह व्यंग्य कटु नहीं बल्कि मनोरंजक होता था।
  4. हास्य: उनके व्यंग्य लेखों में हास्य का भी समावेश था, जिससे उनके लेखन को पठनीयता मिलती थी।

बालमुकुंद गुप्त का हिंदी साहित्य में स्थान एक प्रखर व्यंग्यकार, श्रेष्ठ पत्रकार और समाज सुधारक के रूप में है, जिन्होंने समाज में हो रहे परिवर्तनों और समस्याओं पर प्रभावी ढंग से ध्यान दिलाया।

Leave a Reply